वर्तमान परिस्थिति Abhishek Pandey
वर्तमान परिस्थिति
Abhishek Pandeyउखड़ी साँसें, उजड़ी गोदें,
मुंदते लोचन, थमता जीवन,
मुरझाई कलियाँ, सूनी गलियाँ,
उठता रूदन, झल्लाता तन-मन।
जलती लाशें, मरती आसें,
झरते अश्रु, प्यासी मृत्यु,
सूने आँचल, मुँदते कलरव,
उजड़ी माँगें, चुभता नीरव।
छिपता सूरज, छाई बदली,
करुणा प्रेरित अंतर मचली,
झिलमिल दीपक, चलती पवनें,
टूटी नौका, उठती लहरें।
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इस समय कोरोना महामारी के कारण चारों ओर निराशा, हताशा और भय का वातावरण है। लोग दम तोड़ रहे हैं पर मृत्यु की प्यास बुझने का नाम नहीं ले रही। इस कविता में हताशा और निराशा के भावों को ही छिपते सूरज, मुँदता कलरव, टूटी नौका आदि प्रतीकों से तथा दूसरी ओर महामारी की विभीषिका को छाई बदली, उठती लहरें आदि प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया है। आशा है आपको यह कविता पसंद आएगी।