पहले खोना फिर पाना Abhishek Pandey
पहले खोना फिर पाना
Abhishek Pandeyउसने हाथ बढ़ाया,
पर मैं पथ में आगे बढ़ गया,
मुझे सागर पार करना था,
उसे तट पर ही रहना था,
सो वह मेरी नाव न बन सकी।
जब बीच मँझधार में पहुँच गया था,
बार-बार सोचता था कि
माझी से कह दूँ लौट चले
उसी निर्जन तट पर,
पर अंदर से कोई याद दिला रहा था,
कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।
आज जब इस तट पर खड़े हो
उस तट की ओर देखता हूँ,
तो स्मृतियाँ अंतर के झरोखे से
बाहर निकल आती हैं,
और मैं दर्द से झल्ला उठता हूँ,
कभी तो लगता है मैंने सही किया,
पर कभी-कभी शक भी होता है।