कोरोना चला संसद SANTOSH GUPTA
कोरोना चला संसद
SANTOSH GUPTAकोरोना ने कहाँ कि कोरोनी! छाता और घड़ी दो,
लाया था जो चीनी शहर से, लाओ वो पगड़ी दो।
जो भी मिले बूढ़े जवान, सब मिलकर निपटा लेना,
वैक्सीन का लिहाज न करना, मर्यादा भुला देना।
मास्क एक बड़ा दुश्मन है, वो बीच में न आ जाए,
चलो फिर मिलेंगे, सैनिटाईजर से अगर बच पाए।
ठहर जाना विश्राम को जब हो जाए हद,
देश कि दशा समझने चलता हूँ मैं संसद।
पहन-ओढ़कर कोरोना निकला कोरोनी को समझाकर,
खुद चला मनोविनोद करने बच्चों को फुसलाकर।
अकड़कर चला कोरोना हिम्मत अपनी बढ़ाकर,
बंद दुकानें सूनी गलियों और सुन्न सड़कों को पाकर।
नेताजी के नोकझोंक का दृश्य लगा उसे सुंदर,
सीना ताने जब कोरोना पहुँचा संसद के अंदर।
मारे कितने है हमने इसी बात पर चर्चा थी,
प्रवक्ताओं के पिटारो से कुतर्कों की वर्षा थी।
एक कहता मरे बहुत हैं पर दिखाया कम गया है,
एक कहता कुछ छिपाया नहीं बताया सब गया है।
किसकी भला मैं मानूँ किसका यकीन करू मैं,
इस देश की संसद से क्या कूद कर अब मरुँ मैं।
लहर मेरी ये किसने लाई इस पर बड़ी दंगल थी,
बाहर से अधिक संसद के भीतर ही हलचल थी।
टीके क्यों बेचे, की क्यों ये बड़ी गलती थी,
ऐसी ही बातों की प्रतिध्वनि वहाँ भरी थी।
देख सारा तमाशा कोरोना वहाँ से भागा,
हाल भवन का देख नींद से वो जागा।
सोचा था उसने फैलाया सबसे जहरीला लहर है,
जाना अब उससे अधिक तो संसद में जहर है।
