मेरा गुल्लू  Aman Kumar Singh

मेरा गुल्लू

Aman Kumar Singh

वो जब पैदा हुआ
तो घर रौशन हुआ,
खुशियाँ तो पहले भी थीं,
पर आने से उसके
उनकी खनक भी बढ़ी,
उनकी चमक भी बढ़ी।
 

धीरे-धीरे वो सबकी जान बन गया,
धीरे-धीरे वो सबका अरमान बन गया,
उसको गोद में लेने को होते हैं सब बेताब,
वो नन्हा सा गुल्लू बन गया है आफताब।
 

उसकी एक हँसी में हँसता है घर सारा,
उसके एक आँसू में रोता है घर सारा,
उसकी हर किलकारी में होता है संगीत,
उसे देखने भर से होती है उससे प्रीत।
 

वो उसका सिर नीचे करके हँसना,
वो उसका बैठे-बैठे लुढ़कना,
वो उसके सामने के दो दाँत,
उंगली के लिए है सबसे बड़ा हथियार,
वो उसका बिस्तर से कूदना,
वो उसका घर भर में भागना।
 

खिलौने से खेलने वाला
बन गया है सबका खिलौना,
घर भर के दिल पर करता है राज,
अपने गुल्लू का यही है अंदाज़।

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