प्रेम रस Yogendra Singh Chauhan
प्रेम रस
Yogendra Singh Chauhanयाद तेरी गर चिठ्ठी होती
घर शब्दों का अपना बनाता,
मन्द-मन्द सी पुरवइया होती
छन्द-छन्द मैं खुशियाँ सजाता।
रुसवाईयों की दीवारों पर
जब प्रेम रस की खिड़की खुलती,
कुछ उजली-उजली यादों पर
दीवाने की सूरत मिलती।
शयन सुहाना नयनों जैसा
मृतप्राय सृजन हो जाती,
कुछ महकी-बहकी बातों में
परवाने की सीरत मिलती।
लम्हों के झूलों पर
झोंके पलों के नम कर लेता,
कुछ आधी अधूरी रातों में
जमाने के गीत सुना लेता।
श्यामल पट से मौसम पर
रिमझिम-रिमझिम बूँदें घर कर लेता,
कुछ भीगे-भीगे अधरों में
प्रेम कहानी लिख देता।
विराट वसन्त की राहों पर
नाम लिखा हमारा होता,
कुछ चहके-चहके प्रसंगों में
जनम अमर मैं कर लेता।