प्रेम की परिभाषा Shubham Amar Pandey
प्रेम की परिभाषा
Shubham Amar Pandeyजो ये कहते हैं कि
प्रेम में
उन्होंने
किसी को
अपना दिल दिया है,
उन्होंने अपनी
भावनाएँ,
इच्छाएँ,
कर्तव्य
किसी के प्रति
समर्पित कर दिए हैं,
अपनी नींद,
ख्वाब,
पसंद,
पहचान
तक किसी पर
कुर्बान कर दी है,
क्या वो
सच कहते हैं
क्या वे सच्चे हैं?
नहीं.......
मैं नहीं मानता
ऐसे किसी भी
कुतर्क को
जो यह बताता है
कि भावनाएँ
और कर्तव्य भी
किसी पर समर्पित होते हैं,
ख्वाब,
नींद,
पसंद पर भी
किसी और का
अधिकार हो सकता है,
मैं बिल्कुल
इसके विरुद्ध हूँ।
मैं मानता हूँ
कि प्रेम में
समर्पण,
दान,
कुर्बानी
यह केवल
लफ्बाजी है,
प्रेम तो
वह पवित्र एहसास है
जिसमें कोई भी
स्वयं की
अपूर्णता को
हममें पूर्ण पाता है,
वह स्वतः ही
हमारे जज्बातों को
महसूस करता है,
हमारी भावनाएँ
उसे अपनी सी लगती हैं,
वह स्वयं
अपनी नींद को
त्याग कर
हमारे ख्वाब में
जगने को
प्रेरित होता है,
और शायद यही
प्रेम की परिभाषा भी है।