किरदार  Sandeep Kumar Threja

किरदार

Sandeep Kumar Threja

ना जाने किस-किस किरदार को निभाता चला गया मैं,
यूँ ही किरदारों की ओट में ज़िन्दगी चलाता गया मैं।
 

कभी खुद को बेटा, कभी पति, कभी पिता बनाता चला गया मैं,
कभी दुखी तन से, कभी खुशी मन से, किरदारियाँ निभाता चला गया मैं।
 

कभी अपने ही किरदारों के बीच खुद को लड़ाता चला गया मैं,
कभी अपने ही किरदारों में अपने को उलझाता चला गया मैं।
 

कभी किसी किरदार को घिसाता कभी चमकाता चला गया मैं,
हर किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाता चला गया मैं।
 

अपने किरदारों को ज़माने के कलचर में बहाता चला गया मैं,
कभी चकाचौंध से कभी तोहमतों से बचाता चला गया मैं।
 

कभी-कभी अपने ही किरदार को नहीं पहचान पाता हूँ मैं,
ज़माने के रंग में इस कदर ढल जाएगा ये हैरान सा हो जाता हूँ मैं।
 

ना जाने किस-किस किरदार को निभाता चला गया मैं,
यूँ ही किरदारों की ओट में ज़िन्दगी चलाता गया मैं।

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