शुभे अंकित कुमार छीपा
शुभे
अंकित कुमार छीपागिरते पड़ते से जीवन का हो तुम ही आधार शुभे,
कैसे बतलाऊँ, है मुझको कितना तुमसे प्यार शुभे।
तुमसे मिलकर जीवनरूपी
कविता को उपमान मिले,
क्रन्दन करते कोरे कागज़
को नूतन सौपान मिले।
सुंदर सी इक ठोर मिली
आवारा फिरते लेखन को,
जैसे बरसों के तप का
परमेश्वर से वरदान मिले।
मेरे अभिशापित जीवन का तुम हो मंगलवार शुभे,
कैसे बतलाऊँ, है मुझको कितना तुमसे प्यार शुभे।
प्रेमसुधा या कोपगरल हो
सब कुछ हँसकर अपनाया,
तुम को पाने के यत्नों में
अक्सर खुद को ही पाया।
आघातों से डर कर जब भी
राह पलायन की थामी,
तुमसे विपरीत जाने वाला
पथ भी तुम तक ले आया।
आशाओं का स्वप्नलोक है तुमसे ही साकार शुभे,
कैसे बतलाऊँ, है मुझको कितना तुमसे प्यार शुभे।
मन के सूखे भूमंडल पर
फूल कई खिल जाते हैं,
जब भी मेरे हाथ तुम्हारे
हाथों से टकराते हैं।
अंतरिक्ष में उल्काओं सा
मेरा हृदय विचरता है,
कृष्णकाय से नैन तुम्हारे
जिसको खींचें जाते हैं।
जर्जर सी मन की कुटिया का हो तुम ही श्रृंगार शुभे,
कैसे बतलाऊँ, है मुझको कितना तुमसे प्यार शुभे।
भीषण स्याह अमावस का सब
अंधियारा हर सकती हो,
तुम उजियारे का इक शीतल
निर्झर बन झर सकती हो।
व्याकुल मन की चौखट पर तुम
दीपक सी रौशन होकर,
अपनी दीपशिखा से मन की
दिवाली कर सकती हो।
है तुम से ही जगमग मन के भीतर का घर बार शुभे,
कैसे बतलाऊँ, है मुझको कितना तुमसे प्यार शुभे।
फूल तुम्हारे रूप के आगे
नियमित पानी भरते हैं,
एक तुम्हारे तिल के ऊपर
तिल-तिल करके मरते हैं।
सारे जग की सुंदरता
संचित है तुम्हारी बिंदी में,
किंतु बिंदी को ही सब
अक्सर अनदेखा करते हैं।
मन सूनी सी देहरी है और तुम हो बंदनवार शुभे !
कैसे बतलाऊँ, है मुझको कितना तुमसे प्यार शुभे।
जिस क्षण तुम मुस्काओ
सौ-सौ दिनकर जलने लगते हैं,
जो तुम क्रोधित हो जाओ
हिमनद भी गलने लगते हैं।
तुम ठहरो तो सब गतियों की
दुर्गतियाँ हो जाती हैं,
तुम चल दो तो पीछे-पीछे
पथ भी चलने लगते हैं।
तुम बिन ठप्प हो जाता है गीतों का कारोबार शुभे,
तुम बिन ठप्प हो जाता है इस कवि का कारोबार शुभे,
कैसे बतलाऊँ, है मुझको कितना तुमसे प्यार शुभे।