विजय निष्प्रयाय सत्य  VIMAL KISHORE RANA

विजय निष्प्रयाय सत्य

VIMAL KISHORE RANA

जब विजय निष्प्रयाय है आज सत्य से,
तब इंसान का इंसानियत से क्या नाता रहेगा?
भ्रष्टाचार है आज का आचार-विचार,
कि गंगाजल भी विचलित हो नापाक बहेगा।
 

झूठ की चिल्लाहट जब बन जाए सत्य,
धर्म के नाम पर धर्म की हो हत्या,
सौन्दर्य शीतलता छोड़ उगले जब आग,
चरित्र का आँका जाना, काग़ज़ के मूल्य,
निर्दोषों का खून जब पानी सा बहे,
तो इनकी रगों में क्या खून बहेगा?
तब इंसान का इंसानियत से क्या नाता रहेगा?
जब विजय निष्प्रयाय है आज सत्य से....
 

पैसों से सभ्य और निर्धन जानवर हैं,
अपना उल्लू सीधा हो तो समक्ष मान्यवर हैं,
न्याय और रक्षा के हाथ हैं यूँ बड़े,
कि रक्षक ही आज भक्षक का द्योत्यवर है,
जिस कलम से बाँधे बैठे थे आसरा,
उस कलम के हाथों ही आज कलम सर है।
अजी किस पक्ष को सच्चा कहेंगे आप,
जब बेबस सच ही झूठ की परछाई से डरेगा,
तब इंसान का इंसानियत से क्या नाता रहेगा?
 

जब विजय निष्प्रयाय है आज सत्य से,
तब इंसान का इंसानियत से क्या नाता रहेगा?
भ्रष्टाचार है आज का आचार-विचार,
कि गंगाजल भी विचलित हो नापाक बहेगा।

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
655
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com