कामकाजी कपल की कोरोना-व्यथा Upendra Prasad
कामकाजी कपल की कोरोना-व्यथा
Upendra Prasadदर्द दो या दूर रखो,
पर कभी न अपना मुँह मोड़ो।
हम अमर डोर से साथ बँधे हैं,
ये कोरोना क्या तोड़ पायेगी,
बस दो दिनों की शामत है,
जो समय के साथ टल जाएगी।
चाहे खाद न पानी दो,
पर खिले फूल को मत तोड़ो।
दर्द दो या......
ठान लिये जब महासमर में
कोरोना को हराना है,
जान रहे या जाए अब तो
लोगों को बचाना है।
चाहे याद न आए तुझको,
रूठकर कभी न दिल तोड़ो।
दर्द दो या.......
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कोरोना काल संकटों का दौर रहा है। यह संकट उन कामकाजी पति-पत्नी (कपल) के लिए अभिशाप बनने लगा जो बीमार लोगों को बचाने में महीनों एक दूसरे से दूर रहे। ऐसी विकट परिस्थिति में पत्नी अपने पति को मानसिक अवसाद से उबारने के लिए जो सम्वाद प्रेषित करती है, वह इस कविता में अभिव्यक्त है।