भ्रम टूट गया है VIMAL KISHORE RANA
भ्रम टूट गया है
VIMAL KISHORE RANAपंख लगाकर उड़ते हुए
सपनों का भ्रम तो टूट गया है,
कच्ची-पक्की रेत की भावनाओं का
महल भी छूट गया है,
आशाओं से छलकता, सुंदर सुडौल मटका,
इक सच के आघात से फूट गया है।
पंख लगाकर उड़ते हुए,
सपनों का भ्रम तो टूट गया है……
लहरों ने जो निशां दिये थे तट को,
उनकी सुंदरता से मट को,
नीर अविचल माना हुआ,
नयन आकर्षण ठाना हुआ,
नहीं चाहता था देना मिटने,
नहीं चाहता था देना सिमटने,
पर वह तो एक छलावा था,
आकर्षण को एक दिखावा था,
मिटने को निशां फिर मिट गए,
फिर से लहरों में सिमट गए,
कुछ नई आकृति उभर गई,
वो मिट्टी फिर से संवर गई,
अपनी मोहक छवि से तट को,
फिर से कुछ तो लूट गया है।
पंख लगाकर उड़ते हुए,
सपनों का भ्रम तो टूट गया है……
सूर्य की किरणों ने मिलकर
रंगीन छवि की रचना की,
बादलों ने खुश होकर
उस इंद्रधनुष की कामना की।
रंगीन कुछ रेखाओं को ही
एक अस्तित्व है मान लिया,
मीठी इक मुस्कान के संग
बस प्रेम का मंत्र ठान लिया।
पर वो तो एक मोहिनी थी,
पल दो पल की सनसनी थी,
बादलों को फिर से उकसाकर,
मीठा सा इक जहर पिलाकर,
सूर्य की रोशीनी के संग
किसी दिशा में बीत गया है।
पंख लगाकर उड़ते हुए
सपनों का भ्रम तो टूट गया है,
कच्ची-पक्की रेत की भावनाओं का
महल भी छूट गया है,
पंख लगाकर उड़ते हुए……..