वर्षा आई Anupama Ravindra Singh Thakur
वर्षा आई
Anupama Ravindra Singh Thakurवर्षा आई, वर्षा आई,
निराशा को दूर भगा कर
उमंग और उल्लास है लाई,
सूखी और बंजर भूमि में भी
फिर से नवयौवन भर पाई,
वर्षा आई, वर्षा आई।
वसुंधरा का साज शृंगार है लाई,
धरा को हरी दुशाला है पहनाई,
मही को दुल्हन सा सजाई,
वर्षा आई, वर्षा आई।
जल से भर गई
पर्ण और टहनियाँ,
शालीनता से मानो
नीचे झुक गई,
प्रकृति स्वयं
वर्षा का
अभिवादन कर हर्षाई,
वर्षा आई, वर्षा आई।
तुडंब ताल-तलैया
उफनती नदियाँ,
गाते पंछी,
गुनगुनाते भँवरे,
चमचमाते जुगनू,
कितनी सारी मस्तियाँ लाई,
वर्षा आई, वर्षा आई।