दर्पण विकास वर्मा
दर्पण
विकास वर्मादुनिया बदलते देखा है
खुशियाँ बदलते देखा है,
इस दिल की हर रवानी में
महफ़िल बदलते देखा है।
जो थे यहाँ चश्मे हजार
हर मन बदलते देखा है,
दुनिया बदलते देखा है
खुशियाँ बदलते देखा है।
जग तो भरी निराली थी
अंकुरित उसकी प्याली थी,
नव मास पीड़ा सहती थी
कौन यह महान विभूति थी?
हर बार सहे जगपीडन को
वो आँचल सँवरते देखा है
दुनिया बदलते देखा है
खुशियाँ बदलते देखा है।
पुतलों को चमकते देखा है
मन मंदिर में खिलते देखा है,
बेजान पड़ी चीरशाला में
हर पुतले को सँवरते देखा है।
जो जान हैं चल रहे नंगे तन
भूख-भूख में तरसते देखा है,
दुनिया बदलते देखा है
खुशियाँ बदलते देखा है।
वो लहू तड़पते देखा है
जो राष्ट्र को तार कुर्बान हुए,
वो तन बरसते देखा है
जो कड़ी धूप में किसान हुए।
दिन भर की कड़ी रवानी में
दो दामन महकते देखा है,
दुनिया बदलते देखा है
खुशियाँ बदलते देखा है।
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आज की दुनिया बदलती जा रही है। लोगों का क्या, यहाँ अपने भी समय पर मुँह मोड़ रहे हैं। वो हर माँ भारत माँ है जो कठोर पीड़ा सहकर भी हमें खुशहाल रखती है। आज की दुनिया देखो साहब, गरीब को तन ढकने के लिए कपड़े नहीं और बाजार में बेजान पड़े पुतले कपड़ों से खिल रहे हैं।