वो तुम ही हो  suman sabhajeet yadav

वो तुम ही हो

suman sabhajeet yadav

कभी किसी रोज़
उस बाली उम्र में
जिस मूरत की कल्पना की थी,
वो शहज़ादे हो तुम।
अकेले में तुम्हारे संग
कुछ हँसी ख़्वाब देखे थे,
उन सपनों के
मंजर हो तुम।
 

कुछ पन्नों पर घंटों
नज़रें टिकाए बार-बार
जिन्हें सोचा करती थी,
वह अक्षर हो तुम।
खामोशियों में
कलम दवात के बिन
दिल पर लिखे
अल्फाज़ हो तुम।
 

हर पल
बंद पलकों में
जो चेहरा नज़र आए,
वह तस्वीर हो तुम।
पहर दो पहर
चलते-चलते,
जिन्हें अपने संग पाती थी
वो हमसफर हो तुम।
 

मेरे नैन
जिन्हें प्रतिपल
देखने को तरसे,
वह खुबसूरत नज़ारे हो तुम।
मन ही मन
मेरे होठों पे दबी
मुस्कुराहट और हँसी के
आगाज़ हो तुम।
 

प्रतिपल जिन्हें सोचूँ,
जिन्हें चाहूँ,
वो प्यार,
वह एहसास हो तुम।
मेरा अंक
जिसे अपने में
आग़ोश में भरना चाहे,
वह रहगुज़र हो तुम।
 

मेरी इश्क की शरारत,
मेरी चाह की आहट,
मेरी मंज़िल हो तुम।
मेरी मोहब्बत
का आगाज़, अंजाम,
मेरे शरर हो तुम।
 

मेरे सुकून का पल,
मेरी ज़िन्दगी,
मेरी इनायत हो तुम।
मेरी बेकरारी,
मेरे इंतजार का
प्रतिफल हो तुम।
 

मेरे आलम,
मेरे अजीज,
मेरे जीवन के
सार हो तुम।
बस तुम ही तुम
हाँ तुम ही तुम,
सिर्फ तुम ही तुम हो।

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