अर्जुन  Pooja Singh

अर्जुन

Pooja Singh

कुरुक्षेत्र की धरती पर
नित्य जीवन ज्योति बुझते देखा,
कुछ देर की साँसों की खातिर
अपनों को तड़पते देखा,
मृत्यु तांडव के डर से है मन
थका, हारा, और क्लांत,
आज मन अर्जुन है।
 

न युद्ध का साज सिंगार किया है
न हाथों में हथियार लिया है,
अदृश्य शत्रु के बाणों से है मन लहूलुहान,
शास्त्र हीन और मस्तक झुका है,
आँखों में क्रोध आँसू का मिश्रण है,
आज मन अर्जुन है।
 

क्या पांडव क्या कौरव
क्या देश काल का गौरव,
इस रुदन बेला में
हर रुदन हर चीत्कार हमारी है,
पल-पल अपनों को जाते देखा
यह समय बड़ा ही भारी है,
आज मन अर्जुन है।
 

हैं कृष्ण कहाँ, कहाँ गीता है
यह कालसर्प नहीं पीता है,
हे माधव अब तो अपनी धुन पर
तुम नाच नचाना बंद करो,
क्षमा याचना करते हम
हम पर थोड़ा उपकार करो,
तुम्हें हृदय में खोज सके इतना तो पुण्य नहीं,
फिर भी तुम्हें पुकारने को मन करता
बार-बार दुस्साहस है,
आज मन अर्जुन है।
 

आज यह मानव रोता है
अर्जुन मन को भिगोता है,
हे दयानिधि कल्याण करो
अर्जुन का कुछ तो मान करो,
अर्जुन को जैसे ज्ञान दिया
कर्तव्य मार्ग का भान दिया,
उसी मार्ग पर चलना है
यह मानव मन ले जान,
आज मन अर्जुन है।

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