बेटियाँ CHANDRESH PRAGYA VERMA
बेटियाँ
CHANDRESH PRAGYA VERMAबेटियाँ नाम हैं अभिमान का
एक पिता के स्वाभिमान का,
एक माँ के अटूट विश्वास का
सब कुछ होने के एहसास का।
बेटियाँ तो खुशबू हैं प्यारे फूल की
वो तो मल्हम हैं ज़िन्दगी के घाव की,
बेटियाँ तो चांदनी हैं अँधेरी रात की,
जीवन के प्यारे सुखद एहसास की,
जीवन के प्रफुल्लित उल्लास की।
फिर क्यों 'न ले जन्म' ये दुआ करते हैं,
बस हो 'बेटा ही सिर्फ' ये आशा करते हैं,
कुछ कठोर हृदय कोख में ही प्रहार करते हैं,
बेटी के बजाए बेटे पर ही ये सब मरते हैं।
ज़ोर-ज़ोर से कहते हैं "बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ"
अरे कोई इन बड़े-बड़े मूर्खों को भी समझाओ,
जो इस तरह बेटियों को बेवजह मारते जाओगे,
तो आगे सृष्टि रूपी चक्र को कैसे चलाओगे।
हे निर्लज्ज प्राणी बस अब रुक जा यहीं,
बेटियाँ वरदान हैं जीवन का और कुछ नहीं,
बचा ले अस्तित्व इनका सब कुछ हैं यही,
जो जीवित न रही तो तू भी कुछ नहीं,
जो जीवित न रही तो तू भी कुछ नहीं।