राहे-दिल्लगी Surya Pratap Singh
राहे-दिल्लगी
Surya Pratap Singhदिल्लगी राह चलते यूँ किया मत करो,
गर उम्मीद जगी तो पता, पता न चलेगा,
पता मालूम हो भी जाए अगर,
पीछा उनका जहाँ में न कर पाओगे।
गर पीछे गए उनके सब भूलकर,
वापस आ न पाओगे फिर लौटकर,
लौट आओगे तुम जो किसी भी तरह,
खोए-खोए से गुमसुम रहोगे सदा।
बाद मुद्दत से तुम पछताओगे,
सोचकर अपने ऊपर तरसाओगे,
क्यों गया था पीछे सब छोड़कर,
हासिल कुछ भी नहीं राहे-दिल्लगी में।
वफा की उम्मीद न कर इनसे ऐ दोस्त,
बाद मिलनी तुझे रूसवाई ही है,
उम्मीद रख कुछ खास इन जाँ नसी से नहीं,
इनकी ये आदतें बेशुमार सदियों पुरानी हैं।
इशारों मे इनके बहुत धार है,
कट जाओगे तुमको खबर भी नहीं,
बाद मुद्दत के तुमको खबर आएगी,
जाँ नसीं जब औरों की हो जाएँगी।
मंज़िलें छोड़ जिनके पीछे चले,
साथ उनको तुम्हारा गँवारा नहीं,
वक्त-बेवक़्त क्यों उनका पीछा किया,
क्या किसी ने तुम्हें पुकारा नहीं?