कुछ उदासी दिल की अपनी SANTOSH GUPTA
कुछ उदासी दिल की अपनी
SANTOSH GUPTAकुछ उदासी दिल की अपनी
चलो रद्द कर देते हैं,
कर दो निरस्त निराशा को
अपने मन को कह देते हैं।
दुःखों के समंदर में हम
खुशी का द्वीप बसा लेते हैं,
उम्मीदों के तिनके से
एक कुटीर बना लेते हैं।
हिम्मत की खरपतवार से
इसको दृढ़ कर लेते हैं,
सजाकर मुस्कुराहटों से
भीतर उसके रह लेते हैं।
कुछ उदासी दिल की अपनी
चलो रद्द कर देते हैं,
कर दो निरस्त निराशा को
अपने मन को कह देते हैं।
संयम की एक नाव भी हो
धीरज की पतवार भी हो,
भरोसे की एक पताका
चलो लहरा हम लेते हैं।
हो गया है हर्ष प्रदूषित
इसे शुद्ध कर देते हैं,
कुछ उदासी दिल की अपनी
चलो रद्द कर देते हैं,
कर दो निरस्त निराशा को
अपने मन को कह देते हैं।