क्षणिकाएँ रवि रंजन गोस्वामी
क्षणिकाएँ
रवि रंजन गोस्वामी1
लोग क्यों नहीं समझते हैं
शब्द कितनी चोट करते हैं,
शब्द बाण से अधिक बेधते हैं
कटार से अधिक काट देते हैं।
2
प्रेम की चाहत सबको होती है
चेतन को और जड़ को होती है,
कभी महसूस करके देखो
जड़ में भी कोई चेतना होती है।
3
ये छटपटाहट और बेचैनी
जो तेरे दिल में है बसी,
यही ले जाएगी तुझे
जहाँ मंज़िल है तेरी।