पहचान Upendra Prasad
पहचान
Upendra Prasadन जाति से पहचान हो, न पाँति से पहचान हो,
जिस देश में जन्मे हैं, उस देश से पहचान हो।
देश ही अरमान देता, दुनिया में सम्मान देता,
सर उठा कर चलने का, सच्चा स्वाभिमान देता।
देश ही रोज़गार देता, कितना कारोबार देता,
जीवन के हर मोड़ पर, खुशियों का संसार देता।
न रंग से पहचान हो, न रूप से पहचान हो,
जिस देश में जन्मे हैं, उस देश से पहचान हो।
भूले-भटके यात्री को, देश ही पनाह देता,
तरक्की की राह दिखाकर, मार्ग उसका प्रशस्त करता।
दीन-हीन अभिवंचित का, देश ही सहारा बनता,
मूलभूत अधिकार दिला कर, सब को एक समान बनाता।
न तन से पहचान हो, न धन से पहचान हो,
जिस देश में जन्मे हैं, उस देश से पहचान हो।
देश ही आवास देता, देश ही प्रवास देता,
सबको जीवन जीने का, सुअवसर प्रदान करता।
स्कूलों में ज्ञान देता, नए-नए विज्ञान देता,
अरमानों को पंख लगा कर, सपनों को साकार करता।
न ठाठ से पहचान हो, न बाट पहचान हो,
जिस देश में जन्मे हैं, उस देश से पहचान हो।
महामारी में देश अपना, सेहत का खूब ख्याल रखता,
जन-जन तक पहुँच बनाकर, रोगों से उन्मुक्त करता।
भाईचारे का पाठ पढ़ाता, उत्तम हमें विचार सिखाता,
विविधता में एक होने का, दुनिया को संदेश देता।
न धर्म से पहचान हो, न कुल से पहचान हो,
जिस देश में जन्मे उसकी, धूल से पहचान हो।