कोरोना की सीख  Vibhav Saxena

कोरोना की सीख

Vibhav Saxena

आज कैसी विपदा आ गई इस दुनिया में,
कि घुमन्तु सब मानव अपने घरों में बन्द हैं,
और दूसरी तरफ आसमान में उड़ता पंछी,
एक बेहतरीन जीवन जीने को स्वच्छंद है।
 

सोचता हूँ कितना फर्क है हम में और उनमें,
हम तो प्रकृति को केवल चोट ही पहुँचाते हैं,
और एक वो बेजुबान हैं जो उसके साथ रह,
उसकी ही छाँव तले जीते और मर जाते हैं।
 

तरक्की की अंधी दौड़ में आगे निकलने को,
पृथ्वी से फायदे लेने की हर एक सीमा तोड़ी,
हमसे अच्छा तो आसमान में उड़ता पंछी है,
जिसने आज तक अपनी मर्यादा नहीं छोड़ी।
 

जिन्हें पिंजरे में बन्द रखकर हम खुश होते हैं,
सोचो क्या पा लिया है उनकी आज़ादी लेकर?
समय का फेर भी तो देखो आज क्या हुआ है,
हम जा नहीं सकते हैं घर से कहीं निकलकर।
 

दिन नहीं यह अच्छे मगर एक सीख मिली है,
कि प्रकृति के आगे मानव आखिर निर्बल है,
हमने जो खिलवाड़ किया है प्राकृतिक तंत्र से,
यह आपदा भी उन्हीं बुरे कर्मों का प्रतिफल है।
 

यदि नहीं सुधरेंगे हम सब लोग समय रहते ही,
तो इससे भी ज्यादा कष्ट शायद सहना होगा,
आसमान में उड़ता पंछी यही सीख दे रहा है,
मानव को अब प्रकृति से जुड़कर रहना होगा।

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