जरा सोचिए Vibhav Saxena
जरा सोचिए
Vibhav Saxenaकहाँ है मानव, मैं तो अक्सर ही उसकी खोज करता हूँ,
क्या मुझको मनुष्य कहा जाए ये स्वयं से भी पूछता हूँ।
ऐसा नहीं कि इस संसार में अच्छे लोगों का अकाल है,
पर क्या हम वाक़ई मनुज हैं खड़ा यह प्रश्न विकराल है।
जब देखता हूँ सर्वत्र ही असत्य, अन्याय और भ्रष्टाचार,
तब ढूंढता हूँ मैं प्रायः सत्य, शान्ति, स्नेह और सदाचार।
आज हर व्यक्ति दिखाई देता है स्वार्थसिद्धि करते हुए,
कैसा समय है जिसमें सही आदमी रहता है डरते हुए।
माता-पिता, गुरु हो, या नारी, किसी का कोई मान नहीं,
क्यों ऐसा है मानव कि अपनी मानवता का भान नहीं।
निर्धन और निर्बल का कोई भी सहायक नहीं है यहाँ,
सामर्थ्यवान को इस युग में दोष देता भी है कोई कहाँ?
भौतिकता की अंधी दौड़ में प्रकृति की कोई चिंता नहीं,
स्वार्थी मनुष्य लालसा पाले अपने पाप भी गिनता नहीं।
आए दिन प्राकृतिक आपदा और रोगों से त्रस्त रहते हैं,
किन्तु फिर भी मानव अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं।
अब भी समय है हम सभी जागकर सद्गुणों को अपनाएँ,
प्रकृति से खिलवाड़ बंद कर उसकी रक्षा हेतु आगे आएँ।
मानव जो आदर्श जीवन जीते हुए प्रकृति से जुड़ जाएगा,
निश्चित रूप से वह तब सच्चे अर्थों में मानव कहलाएगा।