अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं Muhammad Asif Ali
अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं
Muhammad Asif Aliअपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं,
आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं।
चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ,
महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं।
जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है,
हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं।
छोड़ देते हैं कुछ दिन ये फ़ज़ा का मुक़ाम,
चंद रोज़ इस घर से निकल कर देखते हैं।
लौह-ए-फ़ना से जाना तो फ़ितरत है सभी की,
यार-ए-शातिर पे एतिबार फिर कर कर देखते हैं।
कौन सवार हैं कश्ती में कौन जाता है साहिल पर,
सात-समुंदर से 'आसिफ' गुफ़्तगू कर कर देखते हैं।
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कवि इस कविता में कहना चाहता है कि जो भी मिलता है किस्मत से मिलता है। अगर आपका भाग्य साथ देता है तो आप सम्पूर्ण संसार जीत सकते हैं और अगर भाग्य साथ नहीं दे रहा है तो आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं। आपको हर समय अपने रब से अच्छी उम्मीद रखनी चाहिए क्योंकि वही है जो किस्मत को भी पल भर में पलट सकता है।