ख्वाबों की करवटें Ravi Panwar
ख्वाबों की करवटें
Ravi Panwarरात दिन गुफ्तगू में
मशगूल है बेचारा,
महबूब से कहता है कि
वक़्त कटता नहीं हमारा।
जीतने की ज़िद में
काट रहा है पर परिंदों के,
बिन मेरे ए फलक
कोई आशिक नहीं तुम्हारा।
तमाम उम्र कहता रहा
हर किसी को खुदगर्ज,
पर खुद के साथ कभी
एक लम्हा नहीं गुज़ारा।
यूँ चटक गया आईना
बदन की हजार दरारों में,
बुढ़ापे ने कभी इतनी
शिद्दत से नहीं पुकारा।
मत पीने दे उसे
मदमस्त मौसम की हवा,
गर बहक गया बादल
तो लौट कर नहीं आएगा दोबारा।
और, तैरता रहा रात भर "रवि "
एक सूखे समन्दर में,
न सहर-ए-मौत मिली
न मिला वो बुज़दिल किनारा।