अन्तर्द्वन्द्व Anupama Ravindra Singh Thakur
अन्तर्द्वन्द्व
Anupama Ravindra Singh Thakurरोको मत माँ मुझे
टोको मत माँ मुझे,
अब मैं बड़ी हो गई।
रात को जल्दी आ
इसके साथ मत जा,
उसके साथ मता जा
किस बात की फिकर,
किस बात की चिंता
तू अब ना मुझको समझा।
रोको मत माँ मुझे
टोको मत माँ मुझे,
अब मैं बड़ी हो गई।
क्यों तेरा मन घबराता है,
कहीं कुछ ना हो जाए
यह सोच कर डर जाता है,
अकेले तू कहीं मत जा
हैवानों से खुद को बचा,
यू ना अपना तन दिखा
यह सब
तू अब ना मुझको समझा,
रोको मत माँ मुझे
टोको मत माँ मुझे
अब मैं बड़ी हो गई।
सोशल मीडिया है विशाल
उस पे ना तस्वीर डाल,
साईबर अपराधी बैठा है
तुझ पर फेंक ने को जाल।
यूँ ना अपने आप को सता
ना कर चिंता ना घबरा।
हम भी हैं माहिर,
हमें भी है पता यह सब
तू अब ना मुझको समझा,
रोको मत माँ मुझे
टोको मत माँ मुझे,
अब मैं बड़ी हो गई।
खुले घूमें में कैसी पाबंदी
लड़कों से मिलने में कैसी पाबंदी,
कैसा है ये समाज
कैसी है ये रीति,
पिछड़ी सोच
पिछड़ी नीति।
क्यों तू मुझको ही
बदलने को कहती,
क्या नहीं कोई
समाज की गलती?
यह सब
तू अब ना मुझको समझा,
रोको मत माँ मुझे
टोको मत माँ मुझे,
अब मैं बड़ी हो गई।