मुझे अच्छा कोई कहता  SHIV VIBHUTI NARAYAN

मुझे अच्छा कोई कहता

SHIV VIBHUTI NARAYAN

मुझे अच्छा कोई कहता
कोई बुरा समझता है,
अच्छाई पर पग रखता
बुराई कब जकड़ता है।
 

बनाकर स्वच्छ इक कुटिया
ऐसे छोड़ दिया हमने,
किसी दिन आकर देखा तो
कुटी गन्दी थी अब लगने।
 

बुहारन मैं चला अपने
बोहारी हाथ में लेकर,
बना तब स्वच्छ कुटिया फिर
बुहारन जब किया बाहर।
 

आया तब समझ हमको
बुरा मन कब बनता है,
अन्तर्मन की बुहारन को
बुहारना छोड़ देते हैं।
 

अच्छाई दब जाती है
बुराई चढ़ जाती है,
अच्छा हो के भी एक दिन
बुरा हम बन जाते हैं।
 

नदी वही स्वच्छ होती है
जो प्रतिदिन बहती है,
मिट्टी त्याग करके जब
पत्थरों से हो गुज़रती है।
 

अंतर्मन स्वच्छ होता जब
चिंतन रोज मैं करता,
दुर्विचार त्याग करके हम
पथ सुविचार के चलता।
 

मैं सुकर्म जब करता
जमाना सुर मुझे कहता,
तब दुष्कर्म क्यों करता
नहीं असुर हमें जमता।

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