कल्पनाओं के कोने DEEKSHA RAWAT
कल्पनाओं के कोने
DEEKSHA RAWATएक छत, चार दीवारें,
उस पर भी बिस्तर का इक कोना
उसमें सिमटा सारा जहाँ।
क्या जिंदगी के पल,
यहीं से शुरू और
यहीं पर हैं ख़त्म
या फिर यही चार दीवारें,
यही छत
रूप दूसरा लेकर
दौड़ेंगे काटने को?
खोज रहे जो हृदय शांति गर,
हृदय में ही मिल पाएगी।
चाहे कोना या फिर दुनिया,
यही मतलब दोहराएँगी।
कल्पना के भी पंख हैं होते
विचरण वह सब कोने करती,
ढूँढती मगर वही शांति है
जो अंतर में ही है बसती।
सत्य, मिथक, व्यथा और
बाधा
दीवारें हैं अंतर मन की,
हृदय बनाता छत है इसकी
पंख लगाती है कल्पना।
सहलाती वो कोमलता से,
विचरण करने को धकेलती
इक कोने से दूजा कोना,
बस उठने भर की है देरी।