कल्पनाओं के कोने  DEEKSHA RAWAT

कल्पनाओं के कोने

DEEKSHA RAWAT

एक छत, चार दीवारें,
उस पर भी बिस्तर का इक कोना
उसमें सिमटा सारा जहाँ।
क्या जिंदगी के पल,
यहीं से शुरू और
यहीं पर हैं ख़त्म
या फिर यही चार दीवारें,
यही छत
रूप दूसरा लेकर
दौड़ेंगे काटने को?
 

खोज रहे जो हृदय शांति गर,
हृदय में ही मिल पाएगी।
चाहे कोना या फिर दुनिया,
यही मतलब दोहराएँगी।
 

कल्पना के भी पंख हैं होते
विचरण वह सब कोने करती,
ढूँढती मगर वही शांति है
जो अंतर में ही है बसती।
 

सत्य, मिथक, व्यथा और
बाधा
दीवारें हैं अंतर मन की,
हृदय बनाता छत है इसकी
पंख लगाती है कल्पना।
 

सहलाती वो कोमलता से,
विचरण करने को धकेलती
इक कोने से दूजा कोना,
बस उठने भर की है देरी।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
451
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com