कवि नहीं हूँ मैं कोई बस Bhanu Pratap Singh Tomar
कवि नहीं हूँ मैं कोई बस
Bhanu Pratap Singh Tomarकवि नहीं हूँ मैं कोई बस
केवल कलम चला लेता हूँ,
मन के उभरे भावों को मैं
अपने शब्द बना लेता हूँ।
हिंदी का भी ज्ञान नहीं है
गीत, ग़ज़ल मैं क्या जानूँ,
छंद और मुक्तक के भी,
अंतर को ना पहचानूँ,
जो भी कलम से लिख जाए
बस उसको मीत बना लेता हूँ,
कवि नहीं हूँ मैं कोई बस
केवल कलम चला लेता हूँ।
करबद्ध निवेदन है सबसे
बस मुझको गले लगा लेना,
टूटा-फूटा जो लिख दूँ मैं
कमियाँ मुझे बता देना,
बात जो मन आई मेरे
वो सबको बतला देता हूँ,
कवि नहीं हूँ मैं कोई बस
केवल कलम चला लेता हूँ।
भागमभाग हुआ है जीवन
समय नहीं है जीने को,
कुछ भी समझ नहीं आता है
समय ना खाने-पीने को,
जीवन के इस व्यस्त सफर में
थोड़ा समय बचा लेता हूँ,
कवि नहीं हूँ मैं कोई बस
केवल कलम चला लेता हूँ,
मन के उभरे भावों को मैं
अपने शब्द बना लेता हूँ।