पुकार Sameer Rishi
पुकार
Sameer Rishiसुन पथिक! तू चल ज़रा
क्या है तू यूँ सोचता,
ये राह तुझको ढूँढती,
वो शूल तुझको पूछता।
मार्ग है प्रशस्त जब
तो चाल से क्या डर भला,
तोड़ सारी बंदिशें
वक़्त अब भी न टला।
धर स्वरुप विकराल तू
तो काल की बिसात क्या?
जीत की हो चाहतें
तो हार की औकात क्या।
सोच मत तू क्या हुआ,
सोच मत जो था बुरा,
वो लोग गिड़गिड़ाएँगे
देख वो शिखर रहा।
उठ पथिक तू चल ज़रा
है कृष्ण तुझको पूछता,
है कौरवों से तू घिरा
वो "पार्थ" तुझमें ढूँढता।
ये राह ही कुरुक्षेत्र अब
यही तो चक्रव्यूह है,
है वीर अभिमन्यु तू
बहा दे रक़्त अब ज़रा।
कर्म कर तू कर्म कर
गीता की ये पुकार है,
हर क्षण है संग्राम अब
ये शत्रुओं की हार है।
चल पथिक तू चल पथिक
"वो" मूक ही हो जाएँगे,
थे रोड़े तेरी राह के जो
स्व-अग्नि में जल जाएँगे।
सुन पथिक! तू उठ पथिक!
अब चल भी दे तू यूँ ज़रा।