धीरे-धीरे Anita M. Gupta
धीरे-धीरे
Anita M. Guptaधीरे-धीरे चल वक़्त अब तू
बहुत कुछ करना बाकी है,
बिन गुज़ारे जो पल गुज़र गए
उन पलों में जीना बाकी है।
खोने का करूँ मैं गम या
जो साथ है उसका करूँ ग़ुरूर,
सच कहा किसी ने कि
रात के बाद होती सुबह ज़रूर।
दिल दुखाना चाहा नहीं था,
फिर भी कभी अनजाने में
गलतियाँ जो कर डाली होंगी
पश्चाताप उनका करना बाकी है।
थम जाए वक़्त तो यह जान सकूँ
क्या-क्या पीछे छूट गया है,
कुछ कदम पीछे शायद
चलना तो अभी बाकी है।
धीरे-धीरे चल वक़्त अब तू
बहुत कुछ करना बाकी है,
बिन गुज़ारे जो पल गुज़र गए
उन पलों में जीना बाकी है।