अजब दस्तूर Geetika Saxena
अजब दस्तूर
Geetika Saxenaजाने कैसा अजब चलन हुआ है ज़माने का,
चीजों के बदले इस्तेमाल हो रहा इंसानों का।
दुखाकर दिल किसी का बन रहे हैं होशियार,
कैसा मोल लगाया उसके ऐतबार जताने का।
देकर आँसू किसी को रो रहे हो अपने दुख पे,
कुछ असर तो होगा उसकी दर्द भरी आँहों का।
पहले गिरगिट बस दिखा करते थे बाग बगीचे में,
अजीब रिवाज़ चला इंसानों में रंग बदलने का।
सब कहते हैं भूल जा दुनियादारी अब यही है,
लाऊँ कहाँ से दिल ऐसी दुनियादारी निभाने का।
ना कर यकीन किसी पर आँखें मूंदकर गीतिका,
दस्तूर चला है दोस्त बनकर दुश्मनी निभाने का।