नियति के प्रश्न  DEEKSHA RAWAT

नियति के प्रश्न

DEEKSHA RAWAT

इलाही मेरे अंदर, इलाही तेरे अंदर,
फिर ढाँचे का खेद क्यों?
ईश्वर वही अल्लाह वही,
फिर बाहर इतना भेद क्यों?
है प्रश्न थोड़ा जटिल लेकिन
जीवन सबका एक ही।
भेद-खेद के फेर से
मृत्यु सब की एक ही।
नफरतों के बीच ही, प्रेम लौकिक हो सका,
इक बीज ही काफी सही, है जरूर पनपता।
अगणित स्वरों के बीच तू, खुद भीतरी आवाज सुन
है सत्य क्या मिथ्या है क्या, सोचकर खुद ही तू चुन।
हम सरिके आये कई, अर गये कही
यह सिलसिला चलता रहा।
वही गूदा, चमडी वही,
फिर काफिले का प्रश्न क्यों?

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