अहंकार Prakriti Shukla
अहंकार
Prakriti Shuklaजीत सदैव सत्य और धर्म की ही होती आ रही है,
रामायण हो या महाभारत सीख हर बार नई ही देती जा रही है।
पाप का नाश तो निश्चित ही है होना,
बच सको तो बच लो यदि शेष हो धरती का कोई कोना।
अहंकार तुम्हारा जो तुम्हारे मुखमंडल पर शोभायमान है,
जीत तुम्हें यही दिलाएगा यह तुम्हारा झूठा अभिमान है।
पतन की ओर तुम्हारे, तुम्हें यही अहंकार उन्मुख करेगा,
सम्मुख धर्म के तुम्हारा मस्तक एक बार फिर झुकेगा।
इतिहास साक्षी है अभिमान कब किसका टिका है,
रावण हो या दुर्योधन हर किसी को झुकना पड़ा है।