होलिका  Vibhav Saxena

होलिका

Vibhav Saxena

मैं होलिका हूँ.... हाँ मैं वही होलिका हूँ,
वही होलिका जिसे तुम लोग बुराई का
प्रतीक मानकर हर वर्ष जलाते हो किंतु,
कभी ख़ुद की बुराइयों को नहीं जलाते।
 

तुम्हें तो यही लगता है कि मैंने अपने भाई
हिरण्यकशिपु की सहायता के लिए अपने
भतीजे प्रहलाद को अग्नि में जलाकर उसे
मार देने का षडयंत्र रचा, पर सत्य यह नहीं।
 

सोचो क्या मेरी जगह कोई भी बहन होती
तो क्या वह अपने भाई के लिए ऐसा कुछ
नहीं करती, क्या अपने प्राणों को संकट में
डालकर भी नहीं निभाती वह इस रिश्ते को।
 

यह सही है कि मैंने अपने भाई के लिए ही
किया था यह सब, किन्तु इसके पीछे भी है
एक रहस्य और कथा छिपी हुई जो संभवतः
तुम लोगों को पता भी नहीं चली आज तक।
 

विधाता का वरदान ऐसे ही मिथ्या नहीं होता,
वह वस्त्र नहीं जल सकते थे किसी अग्नि में,
किंतु मैं भी तो स्त्री हूँ, ममता जाग गई थी मेरे
मन में अपने पुत्र के समान प्रहलाद के लिए।
 

सो अग्नि बढ़ते हुए देखकर अपने वस्त्र को
मैंने ओढ़ा दिया अपने भतीजे को और स्वयं
जल गई उस अग्नि में ताकि जीवित रहे धर्म,
और संसार में कोई ना समझे स्वयं को ईश्वर।
 

मैं बुरी नहीं हूँ और ना ही बुराई का प्रतीक हूँ,
मैं तो होलिका माई हूँ जो बचाती है सदैव ही
प्रहलाद जैसे सद्गुणी मानवों को हर दुर्गुणी
और अत्याचारी दानव से इस सत्य को जानो।
 

यह पर्व है केवल एक शिक्षा देने का माध्यम,
कि अपने दुर्गुणों को होलिका में जलाएँ हम,
और वैर भाव छोड़ एक हो जाएँ सभी मानव,
चलें सत्य के मार्ग पर ईश्वर का नाम लेते हुए।

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