निराला-मतवाला  Kuldeep Kriwal

निराला-मतवाला

Kuldeep Kriwal

छायावाद के रूद्र थे वो
जो कहलाए दीनों के मसीहा,
उनके जन्म-दिवस, बसन्त पंचमी पर
भावुक हुआ यह दीप मतवाला।
 

प्रतीक्षारत है उनके पात्र
देने के लिए उन्हें शुभकामना,
आई है मण्डप से उठकर सरोज-स्मृति
जो रही शोक-गीत का सबसे बड़ा प्याला।
 

जूही की कली
आज भी खड़ी है,
इंतजार में छपने के
जिसमें था प्रकृति-मानव का सम्पुट निराला।
 

अनामिका, परिमल, गीतिका
जोड़े हाथ खड़ी है,
रत्नावली से मिली फटकार से
तुलसीदास आज प्रसिद्धि पा रही।
 

पूर्ण हुई राम की शक्ति-पूजा
आशीष देने को शक्ति अब प्रकट हुई,
होगी जय ! जय ! पुरूषोत्तम नवीन
ऐसा कह महाशक्ति समर में लीन हुई।
 

दीन-हीन पात्र भी
आएँ हैं देने शुभकामना,
भिक्षुक आया है पेट पकड़कर
विधवा की थी आज भी वही करुण कहानी।
 

अणिमा, बेला, नये पत्ते
कर रहे अर्चना सस्वर,
अपरा, गीतगुंज के जुड़े हैं
अब आराधना से स्वर।
 

सन्ध्या-सुंदरी बाट जोह रही
अपना सौन्दर्य दिखाने को,
बादल-राग भी उत्सुक
अपना राग सुनाने को।

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