स्वच्छ रखें इंजी. हिमांशु बडोनी "दयानिधि"
स्वच्छ रखें
इंजी. हिमांशु बडोनी "दयानिधि"जो तन नहीं, तो मन साफ, वाणी-विचार को स्वच्छ रखें,
भलाई और समर्पण से ही, अपने आचार को स्वच्छ रखें।
सबके संग प्रेम से बोलिए, अपने व्यवहार को स्वच्छ रखें,
जिसमें खोट की चोट न हो, ऐसे दृढ़ प्यार को स्वच्छ रखें।
मृदु कथा का अंत नहीं, इसके प्रेरित सार को स्वच्छ रखें,
स्वच्छता ही दैवत्व है, इसके प्रचार-प्रसार को स्वच्छ रखें।
कश्ती भी किनारे उतरेगी, इसकी पतवार को स्वच्छ रखें,
हर दिवस शुभ हो जाएगा, समय की धार को स्वच्छ रखें।
प्रकृति से ही अस्तित्व है, इस जीवनाधार को स्वच्छ रखें,
जो वर्षों से गर्त में छिपा है, उस भू-भंडार को स्वच्छ रखें।
वायु-शुद्धता, वन-सम्पदा व जल की धार को स्वच्छ रखें,
हर ऋतु खिलखिला उठेगी, बसन्ती बयार को स्वच्छ रखें।
चाहे सूक्ष्म हो या वृहद, आप सभी संसार को स्वच्छ रखें,
जल, जंगल व ज़मीन जैसे असीम दुलार को स्वच्छ रखें।
ईश्वर भी अवश्य पधारेंगे, अपने घर-द्वार को स्वच्छ रखें,
मौहल्ला, वार्ड, गाँव, कस्बा और परिवार को स्वच्छ रखें।
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मानव और प्रकृति का सम्बन्ध आदिकाल से ही जननी व पुत्र का रहा है। इस रिश्ते में एक समानता है कि दोनों में से किसी एक घटक में विकृति आने पर अन्य घटक पर प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव पड़ता है। जब-जब मनुष्य की लालसा उसे प्रकृति का दोहन करने हेतु प्रेरित करती है, तब-तब प्राकृतिक आपदाएँ एवं अप्रिय घटनाएँ स्वत: ही क्रमबद्ध रूप में संचालित हो जाती हैं। यदि प्रकृति मानवीय ज़रूरतों के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध करवाती है तो मनुष्य का भी यह परम कर्तव्य है कि वह इनका संरक्षण एवं संवर्धन सुनिश्चित करे। ऐसा केवल तभी संभव होगा जब मनुष्य की वाणी, विचार, व्यवहार एवं प्रण धारण क्षमताओं में समग्रता एवं समानता आएगी। इस प्रासंगिक तथ्य को अभिव्यक्त एवं उजागर करने का प्रयास, प्रस्तुत कविता के माध्यम से किया गया है।