आज की द्रौपदी Umangika
आज की द्रौपदी
Umangikaफिर से अंधों, मूकों, बहरों की सभा में
द्रौपदी की लाज उछाली गई है,
फिर से सत्ता के मोह में पड़कर
चुप्पी सी साधी गई है।
द्वापर में छिड़े युद्ध से
कुछ यह मानव न सीख सका?
दुशासन दुर्योधन के भयावह अंत से
कुछ यह मानव न डर सका?
क्यों बार-बार हर बार
नारी की अस्मिता को झकझोरा जाता है,
फिर उस पर बड़े चाव से
घटिया राजनीति को परोसा जाता है।
फिर वही कौरव और कुछ अंधे
उसे बड़े चाव से खाते हैं,
नारायण के डर को भूल
मदांध में जीते जाते हैं।
जिस नारी के उदर से
वह इस सृष्टि में आते हैं,
उसी नारी की सृष्टि को वे
दूषित करते, करवाते हैं।
हाय गोविंद ! हम असफ़ल रहे
आपकी शिक्षा को अपनाने को,
अथवा हम योग्य ही नहीं हैं
गीता ज्ञान को पाने को।
क्या इसी दिन के लिए केशव ने
धर्मयुद्ध करवाया था?
क्या इसी दिन के लिए प्रभु ने
कष्ट सहकर एक नया रुप रचाया था?
अरे ओ मूढ़! मत भूल
कि ग़र नारी गौरी है तो काली भी है,
मत भूल कि ग़र वह जननी है
तो विध्वंस भी है।
नारायण की प्रतीक्षा में इस बार
द्रौपदी चुप न बैठेगी,
धृतराष्ट्र की मूक सभा में शस्त्र उठाकर
उन दैत्यों की ग्रीवा स्वयं रेतेगी!