धरा पर स्वर्ग बना रही हैं बेटियाँ! Rakhi Jain
धरा पर स्वर्ग बना रही हैं बेटियाँ!
Rakhi Jainबेटियाँ बोझ नहीं किसी पर
'नवयुग' यह कहता है,
खुशियाँ लुटाती हैं, बेटियाँ बाँटती हैं
दुःख दर्द दिल के हर कोने से,
रखती हैं संजोकर इसलिए,
धारित्री कहलाती हैं।
बेटियाँ बन गई हैं सहारा
सुबह का सूरज यह कहता है,
जलती-तपती जाती हैं बेटियाँ
मगर शाम की ठंडक भी देती हैं
किसी से कम नहीं।
देखा हर कर्तव्य निभा रही हैं
बेटियाँ!
कहीं मीरा, कहीं लक्ष्मी,
कहीं दुर्गा, कहीं सरस्वती,
हर रूप में नज़र आ रही हैं
बेटियाँ!
नदी की धारे हैं, जलती मशालें हैं,
सूरज की लालिमा, तो कहीं हवा में खूशबू हैं,
नभ में सितारों की तरह जगमगा रही हैं
बेटियाँ!
धरा पर स्वर्ग बना रही हैं बेटियाँ!
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बेटियों को समाज एक बोझ मानता आया है! जन्म होने पर खुशियों के बजाय उसके दहेज की बातें सोची जाती हैं! लेकिन बेटियाँ घरों में खुशियों का भंडार लाती हैं! घर में बेटियाँ हो तो प्यार, अपनापन और कोमलता हर किसी को समझ आने लगता है। ऐसे ही कुछ भावों को समेटे एक कविता प्रस्तुत की गई है।