उम्मीद Arun Kumar Singh
उम्मीद
Arun Kumar Singhउम्मीद है कि
नाउम्मीदी में उम्मीद फ़िर से जगेगी,
उम्मीद है कि
जीवन की गाड़ी अनवरत यूँ ही चलती रहेगी।
निराशा के घने बादलों के बीच से होकर
आशा के सफ़ेद बादलों के निकल आने की उम्मीद,
शय्या पर पड़े हर उस लक्ष्मण को
हर उस हनुमान के सही समय पर संजीवनी लाने की उम्मीद।
उम्मीद है कि
उम्मीदों के बोझ तले उम्मीद कभी न दबेगी,
उम्मीदों पर खरा उतरने का डर
और इससे लड़ने का साहस उम्मीद से ही बँधेगी।
कभी-कभी उम्मीदें खुद
निराशा-हताशा का कारक बन जाती हैं,
लेकिन फ़िर भी जब तक अच्छा करने की चाह होगी
तब तक उम्मीदें ज़िंदा रहेंगी।
अंधकार हो तो उम्मीद रहती है प्रकाश की,
अपनी काबीलियत के अनुरुप प्रदर्शन न होने पर
उम्मीद रहती है अपनी गलतियों से सीखने की।
हर कोई उम्मीद की खोखली बुनियाद पर
सुनहरा भविष्य निर्मित करने का होता है भुक्तभोगी,
उम्मीदों का कोई अंत नहीं,
यह सर्वशक्तिशाली होकर भी कमज़ोर बनाती हैं,
मानव मन जब दुविधा में हो तब
उम्मीद का ही सहारा ढ़ूंढ़ने लगती है।
उम्मीदें इक जाल बुनती हैं
इंसानो के ऊंचे ख्वाबों के सहारे,
उम्मीद है कि
मन इस जाल को तोड़कर बाहर निकल ही आएगा,
उम्मीद है यह कविता हमें उम्मीद करना नहीं
उम्मीदों पर खरा उतरना सिखाएगी।