यादें  Arun Kumar Singh

यादें

Arun Kumar Singh

यादें रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं,
कुछ धूमिल होती हैं, तो कुछ ताज़ी रह जाती हैं।
 

न जाने क्या क्या सिखा जाती हैं,
धीरे से चुपके से ऑंखो को नम कर जाती हैं,
घर से कोसों दूर कॉलेज की हॉस्टल के छतों पर
ये यादें ही तो हैं जो याद आती हैं।
 

ये एहसास कराती हैं गुज़र गए पलों का,
कभी-कभी ये चेहरे पे मुस्कुराहट उड़ेल जाती हैं,
तो कभी-कभी गम के गुब्बारे फोड़ जाती हैं।
 

ऐसा क्यों नहीं होता कि बुरी यादें मिट जाएँ
और सिर्फ अच्छी यादें ही याद आएँ,
यही तो है जो हमें बीते हुए कल की सैर कराएँ।
 

घर में अकेली माँ अपने बच्चों की फ़ोटो देख
उनके खिलखिलाते बचपन में डूबना चाहती है
उनके यादों के सहारे,
वर्तमान जीवन में वापस लौटना
हो जाता है मुश्किल जब यादें पुकारे।
 

यादें एक ज़रिया हैं
अपने वर्तमान की मुश्किलों से भागने का,
अपने धुंधले भविष्य से मुँह मोड़ने का।
प्रतिदिन इसपे आश्रित रहना
हमें कमज़ोर बना देता है,
जीवन के सरल सहज प्रवाह को
बाधित करने का काम है यादों का।

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