कथनी और करनी  Sarika Nandrajog

कथनी और करनी

Sarika Nandrajog

दुनिया के एक बहुत ही मशहूर
सफल कारोबारी के समारोह में
कथनी और करनी का आमना-सामना
न चाह कर भी एक-दूजे से हो गया।
 

'कथनी' ने बडे़ रौब से अपना परिचय कुछ ऐसे दिया,
"मैं शाब्दिक हूँ, वाचाल हूँ,
मैं ख्वाब हूँ, बेमिसाल हूँ।
कुछ भी कह देना मुमकिन मेरे लिए,
मैं सागर नहीं, महासागर सा हूँ।"
 

सुन 'कथनी' की बड़ी-बड़ी बातें,
'करनी' थोड़ा सा मुस्काया,
फिर आग्रह सुन वहाँ खडे़ लोगों का,
हौले से वह फरमाया-
"मैं कार्मिक हूँ, कर्म है काम मेरा,
हकीकत हूँ मैं, शान्त स्वभाव मेरा।
सम्भव सब करता, कोशिश कर-कर,
मैं मेहनत से न घबराता।"
 

जो भीड़ लगी थी 'कथनी' सँग,
वह खडी़ जा हुई 'करनी' सँग।
'सफलता' जो महफिल की रौनक थी,
वह भी थी 'करनी' सँग।
वह सुन रही थी बातें दोनों की,
फिर उसने तोडी़ चुप्पी अपनी।
बोली, "सुन 'कथनी' तेरा कोई दोष नहीं,
पर 'करनी' बिन तू कुछ भी नहीं।
अस्तित्व न तेरा कुछ भी, जो कर्म तेरे साथ नहीं।
कह देने भर से क्या होता, दुनिया 'करनी' से चलती है,
परिणाम न हो तो, सफलता भी कहाँ मिलती है?"
 

सुन बात पते की, 'कथनी' था सोच रहा,
फिर गया पास में 'करनी' के।
बोला उससे विनती कर,
"सुन 'करनी', दे गर तू साथ मेरा,
तो जो चाहेंगे, वह पालेंगे,
मँजि़ल तक खुद को पहुँचा देंगे।
कथनी-करनी जब होंगे एक तो,
परचम हम लहरा देंगे।
 

सफलता फिर से बोल उठी,
"सुन 'कथनी' गर सँग 'करनी' तेरे,
तो घबराना मत तू, सँग चलूँगी तेरे मैं भी।
अकेला जो तू रहा कभी तो, मुँह मैं भी फेर लूँगी,
कह देने से कुछ न होता, कर लेना ही पार लगाता।
जो असल जि़न्दगी है जीता, वह कहता ना ,करता जाता।"
सुनकर बात 'सफलता' की, करतल से गूँजा घर सारा।

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