बेटियों की डोलियाँ क्यों उठती हैं Rakhi Jain
बेटियों की डोलियाँ क्यों उठती हैं
Rakhi Jainबिटिया है मेरी, जन्मी थी जब लगा
जैसे नन्ही सी एक परी
सुनहरे रंगो में रंगे आसमां से उतरी हो,
जैसे सतरंगी आसमानी
महकते फूलों की कली।
फुदकती थी हमेशा मेरे काँधे पर यूं ही
गौरैया की तरह,
नन्हे-नन्हे हाथों से दुलारती, पुचकारती,
कलोल करती,
उछलती कूदती घूमती घर भर में नन्ही सी परी।
न जाने कब समय ने छीन लिया
उसका चहकना,
नन्हे-नन्हें कदमों में बंधी
छम-छम पायल का छनकना
दो चाँदी जैसे दाँतों से प्यार से काटना,
मेरे पेट पर ही लेटे-लेटे सो जाना,
वो घर में रौनक-रोशनी का बिखेरना।
कद क्या बढ़ा, जैसे जिम्मेदार हो गई,
कब बड़ी हो गई, समझदार हो गई।
जिसकी गोद में पली, उसे ही ज्ञान देने लगी
माता पिता के स्वास्थ्य पर ध्यान देने लगी,
अपने आदर्श मुझमें ही टटोलने लगी
मेरी हर अच्छाई की नकल करने लगी।
बेटियों की डोलियाँ क्यों उठती हैं?
सदा के लिए चली जाती हैं
पराए अनजान द्वार,
बन जाती हैं अजनबी
किसी और घर की पहचान।
यही है सब परियों की कहानी,
सोचते तो हैं सभी कि परी
अपने आसमां में रहे,
अपने तारे चुने, सपने बुने,
स्वावलंबी बने, आत्म सम्मानी बने,
क्यों छोड़े घर बाबुल का अपने
क्यों न साथी बने।
अपने विचार साझा करें
बेटियाँ परियों का ही एक रूप हैं! भगवान ने बेटियों को कुछ अलग सी खनक दी है! अपनी हँसी से पूरे घर को महका देती हैं और एक नहीं बल्कि दो-दो घरों का ध्यान रखती हैं! ना चाहते हुए भी चिड़िया की तरह लड़कियाँ एक घोंसले को छोड़ उड़ जाती हैं! इसी भाव को प्रस्तुत करती कुछ पंक्तियाँ!