इंसान परेशान बहुत है!  Rakhi Jain

इंसान परेशान बहुत है!

Rakhi Jain

कभी-कभी यूँ ही ख्याल आता है,
अच्छी थीं वो पगडंडी अपनी
अब सड़कों पर तो जाम बहुत है,
फुर्र हो गई फुर्सत अब तो
लोगों के पास काम बहुत है।
 

नहीं ज़रूरत घर में बूढ़ों की अब
हर कोई बुद्धिमान बहुत है,
उजड़ गए सब बाग-बगीचे
दो गमलों में ही अब शान बहुत है।
 

मट्ठा, दही नहीं खाते हैं अब
कहते हैं ज़ुकाम बहुत है,
पीते हैं जब चाय तब कहीं
कहते हैं आराम बहुत है।
 

बंद हो गई चिट्ठी, पत्री
फोनों पर पैगाम बहुत है,
आदी हैं ए०सी० के इतने
कहते बाहर घाम बहुत है।
 

झुके-झुके स्कूली बच्चे
बस्तों में सामान बहुत है,
सुविधाओं का ढेर लगा है
पर इंसान परेशान बहुत है।

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