अनकहा पिता-पुत्र संवाद Diwakar Srivastava
अनकहा पिता-पुत्र संवाद
Diwakar Srivastavaमेरी खुरदरे शब्दों में शायद
माँ जैसी कोमल मिठास नहीं है,
स्नेह बहुत है मुझे,
बस तुमको इस बात का एहसास नहीं है।
जीवन में तुम्हें कभी किसी बात पर टोकना
अकारण नहीं है,
परिलक्षित हो मेरा जीवन अनुभव तुम में,
मेरा अभीष्ट यही है।
तुम्हारे जीवन मंच में
नेपथ्य का संजीदा मूक चरित्र हूँ मैं,
उठाना, संभालना, पालना,
तुम्हारा जीवन का बरगद हूँ मैं।
और...
पुरखों की विरासत, संस्कृति का
उत्तरदवित्य अब तुम्हारा होगा,
मेरी अँगुली न होगी थामने को
पर तुम्हे क्षितिज तक जाना होगा।