मनमोहन  ABHISHEK KUMAR GUPTA

मनमोहन

ABHISHEK KUMAR GUPTA

अपनी इस राधा को
ना जाओ कान्हा छोड़ के,
हे निर्मोही मनमोहन
मुख ना जाना यूँ मोड़ के।
 

तेरे इक मुरली की धुन पर
दौड़ी-दौड़ी आई थी,
मूरख थी जो प्रेम मे तेरे
सारा जग बिसरायी थी,
सारे ये गोप ग्वाले तुझको पुकारे
तेरे ही आगे अपना सब कुछ हैं हारे,
आओ कन्हैया हम हैं तेरे सहारे
व्याकुल ये नैन तेरा राह निहारे।
 

जनम-जनम के सारे बंधन
ना जाना अब तोड़ के,
अपनी इस राधा को
ना जाओ कान्हा छोड़ के,
हे निर्मोही मनमोहन
मुख ना जाना यूँ मोड़ के।
 

सूनी ये गोकुल की गलियाँ
तेरा राह निहारती,
बेकल ये यमुना की लहरें
बस तुझको ही पुकारती।
कण-कण में रूप तेरा
देता है दिखाई,
जाने ये कैसी विपदा
हम सब पर आई।
आ जाओ कान्हा फिर से रास रचाने,
प्रेम से हम सब को फिर गले से लगाने।
 

माखन चोर तू खा जा माखन
मटकी को फिर फोड़ के,
अपनी इस राधा को
ना जाओ कान्हा छोड़ के,
हे निर्मोही मनमोहन
मुख ना जाना यूँ मोड़ के।
 

तेरे बिन मेरे जीवन का
हर श्रृंगार अधूरा है,
राधा बिन सावरिया तेरा
जीवन भी कहाँ पूरा है।
प्रीत जगाकर कान्हा
कैसे तू जायेगा,
गोकुल की याद को तू
कैसे मिटायेगा।
मुरली कि तान पर तू
किसको नचायेगा,
राधा के प्रीत को तू
कैसे भुलायेगा।
 

हे निष्ठुर निर्मोही अब तो
आजा जल्दी दौड़ के,
अपनी इस राधा को
ना जाओ कान्हा छोड़ के,
हे निर्मोही मनमोहन
मुख ना जाना यूँ मोड़ के।

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