मकड़ी Goutam Kumar Mahto
मकड़ी
Goutam Kumar Mahtoएक छोटी सी मकड़ी
घर के काठ पर दिख जाती है,
ये उड़ती नहीं, लेकिन हवा में लटक जाती
गौर किया तो पता चला कि
जाल बुनना इसको आता है।
जब बुन रही थी जाल वो
मैंने अपनी बाधा डाल दी,
लेकिन ना तो गुस्से में दिखी
और ना ही कोई आवाज़ निकाली।
सब कुछ नजरअंदाज कर के
फिर अपने काम में लग गई,
काम पूरा हो जाने पर
चुपचाप एकांत किनारे पर जा बैठती
और होनी की प्रतीक्षा करती।
मैं इतना बड़ा इंसान
वो इतनी सी छोटी मकड़ी,
पर तनिक न घबराती
काश वो मेरे पास, मेरे साथ रह पाती।