मैं कौन हूँ DEVENDRA PRATAP VERMA
मैं कौन हूँ
DEVENDRA PRATAP VERMAमैं कौन हूँ
क्या हूँ
और क्यों हूँ।
मेरा एक नाम है
तो क्या मैं वो नाम हूँ,
मैं देख सकती हूँ
अपने आस-पास
सुंदर दृश्य अद्भुत रंग,
अनगिनत रूप
अनेक प्रवास,
तो क्या मैं दृश्य हूँ
या फिर मैं नेत्र हूँ।
मैं सुन सकती हूँ
नदियों मे बहते
जल की कल-कल,
झरनों के गीत
पंछियों के कलरव,
दूर कहीं से आती
घंटियों की आवाज़
सुरों की सरगम को
संगत देते साज़,
तो क्या मैं ध्वनि हूँ
या हूँ मैं कान।
मेरा एक
फलों का बगीचा है,
जिसे मैंने ही सींचा है
और मैं हूँ आज़ाद,
मेरी जिह्वा ने चखे हैं
मीठे, कड़वे और
खट्टे फलों के स्वाद,
तो क्या मैं जिह्वा हूँ
या फिर हूँ मैं स्वाद।
पुष्प हूँ सुगंध हूँ,
या हूँ मैं नाक।
कैसा है यह अनुभव
और क्या है यह ज्ञान
कि मैं देखती हूँ
पर दृश्य नहीं हूँ
नेत्र नहीं हूँ।
सुनती हूँ
पर कर्ण नहीं हूँ
ध्वनि नहीं हूँ।
छूती हूँ पर स्पर्श नहीं हूँ
सतह नहीं हूँ चर्म नहीं हूँ।
खाती हूँ पर दंत नहीं हूँ
फल नहीं हूँ अन्न नहीं हूँ
जिह्वा नहीं हूँ स्वाद नहीं हूँ।
विचारों मे डूबी
अक्सर सोचती हूँ,
कि मैं हर क्षण जानती हूँ
कि मैं सोच रही हूँ
तो क्या मैं विचार भी नहीं हूँ
मस्तिष्क भी नहीं हूँ।
दृश्य बदल रहे हैं
ध्वनियाँ बदल रही हैं
स्वाद बदल रहे हैं
सतह बदल रही है
विचार बदल रहे हैं
मस्तिष्क बदल रहे हैं।
सारे बदलाव को देख रही हूँ
किन्तु मैं नहीं बदल रही हूँ,
दृश्य को नेत्र
नेत्र को मस्तिष्क
और मस्तिष्क को
मैं देखती हूँ
अनुभव करती हूँ
'साक्षी' हूँ
हाँ मैं 'साक्षी' हूँ
पर कौन है
जो मेरा साक्षी है
यह अनुभव कर पाने में
असमर्थ
मैं कौन हूँ
मैं कौन हूँ।