रणभेरी शिवमंगल सिंह 'सुमन' 

रणभेरी

शिवमंगल सिंह 'सुमन'  | वीर रस | आधुनिक काल

माँ कब से खड़ी पुकार रही 
पुत्रो निज कर में शस्त्र गहो
सेनापति की आवाज़ हुई 
तैयार रहो , तैयार रहो
आओ तुम भी दो आज विदा अब क्या अड़चन क्या देरी 
लो आज बज उठी रणभेरी .

पैंतीस कोटि लडके बच्चे 
जिसके बल पर ललकार रहे
वह पराधीन बिन निज गृह में 
परदेशी की दुत्कार सहे 
कह दो अब हमको सहन नहीं मेरी माँ कहलाये चेरी .
लो आज बज उठी रणभेरी .

जो दूध-दूध कह तड़प गये 
दाने दाने को तरस मरे 
लाठियाँ-गोलियाँ जो खाईं
वे घाव अभी तक बने हरे 
उन सबका बदला लेने को अब बाहें फड़क रही मेरी 
लो आज बज उठी रणभेरी .

अब बढ़े चलो , अब बढ़े चलो 
निर्भय हो जग के गान करो 
सदियों में अवसर आया है 
बलिदानी , अब बलिदान करो
फिर माँ का दूध उमड़ आया बहनें देती मंगल-फेरी .
लो आज बज उठी रणभेरी .

जलने दो जौहर की ज्वाला 
अब पहनो केसरिया बाना 
आपस का कलह-डाह छोड़ो 
तुमको शहीद बनने जाना 
जो बिना विजय वापस आये माँ आज शपथ उसको तेरी .
लो आज बज उठी रणभेरी .

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