मैं जो हूँ भवानी प्रसाद मिश्र

मैं जो हूँ

भवानी प्रसाद मिश्र | अद्भुत रस | आधुनिक काल

वस्तुतः
मैं जो हूँ
मुझे वहीं रहना चाहिए
यानी
वन का वृक्ष
खेत की मेड़
नदी की लहर
दूर का गीत
व्यतीत
वर्तमान में
उपस्थित भविष्य में
मैं जो हूँ मुझे वहीं रहना चाहिए
तेज गर्मी
मूसलाधार वर्षा
कड़ाके की सर्दी
खून की लाली
दूब का हरापन
फूल की जर्दी
मैं जो हूँ
मुझे अपना होना
ठीक ठीक सहना चाहिए
तपना चाहिए
अगर लोहा हूँ
हल बनने के लिए
बीज हूँ
तो गड़ना चाहिए
फल बनने के लिए
मैं जो हूँ
मुझे वह बनना चाहिए
धारा हूँ अन्तः सलिला
तो मुझे कुएँ के रूप में
खनना चाहिए
ठीक जरूरतमंद हाथों से
गान फैलाना चाहिए मुझे
अगर मैं आसमान हूँ
मगर मैं
कब से ऐसा नहीं
कर रहा हूँ
जो हूँ
वही होने से डर रहा र्हूँ

अपने विचार साझा करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com