आषाढ़ नरेन्द्र शर्मा
आषाढ़
नरेन्द्र शर्मा | अद्भुत रस | आधुनिक कालपकी जामुन के रँग की पाग
बाँधता आया लो आषाढ़!
अधखुली उसकी आँखों में
झूमता सुधि मद का संसार,
शिथिल-कर सकते नहीं संभाल
खुले लम्बे साफे का भार,
कभी बँधती, खुल पड़ती पाग,
झूमता डगमग पग आषाढ़
सिन्धु शैय्या पर सोई बाल
जिसे आया वह सोती छोड़,
आह, प्रति पग 'अब उसकी याद
खींचती पीछे को, जी तोड़
लगी उड़ने आँधी में पाग
झूमता ड़गमग पग आषाढ़!
हर्ष विस्मय से आँखें फाड़
देखती कृषक सुतायें जाग,
नाचने लगे रोर सुन मोर
लगी भुझने जंगल की आग
हाँथ से छुट खुल पड़ती पाग,
झूमता डगमग पग आषाढ़!
ज़री का पल्ला उड़ उड़ आज
कभी हिल झिलमिल नभ के बीच,
बन गया विद्युत द्युति, आलोक
सूर्य शशि उडु के उर से खींच!
कौंध नभ का उर उड़ती पाग,
झूमता डगमग पग आषाढ़!
उड़ गयी सहसा सिर से पाग-
छा गये नभ में घन घनघोर!
छुट गई सहसा कर से पाग-
बढा आँधी पानी का जोर!
लिपट लो गई मुझी से पाग,
झूमता डगमग पग आषाढ़!
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परिचय
"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।
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